भैया दूज — भाई-बहन के अटूट बंधन का त्योहार, जिस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। हर साल यह त्योहार हर्ष और अपनत्व का वातावरण ले आता है।
लेकिन इस साल, भाईया दूज के अवसर पर एक ख़ास बात चर्चा में है — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से एक “तोहफा” — न तो एक भौतिक उपहार, बल्कि प्रेरणा और संदेश — जिसे देशव्यापी रूप से बहुत सम्मान मिला है।
इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि यह उपहार क्या है, इसकी पृष्ठभूमि क्या रही, लोगों की प्रतिक्रिया कैसी रही, और इसने किन सामाजिक और राजनयिक संदेशों को जन्म दिया।
तोहफे की घोषणा: क्या और क्यों?
उपहार क्या है?
प्रधानमंत्री मोदी ने इस भाईया दूज पर यह अभिव्यक्ति की है कि वह भाइयों को एक विशेष संदेश और प्रेरणाप्रद उपहार देना चाहते हैं — एक राष्ट्रीय समर्पण अभियान।
उन्होंने कहा है कि वे भाई-बहनों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं कि वे एक समाज सेवा प्रोजेक्ट को अपनाएँ — यह एक “भाई दूज सेवा तोहफा” है।
यह सेवा प्रोजेक्ट निम्नलिखित घटकों का मिश्रण हो सकता है:
- स्वच्छता अभियान (स्वच्छ भारत पहल जैसे)
- पढाई सहायता/ट्यूशन क्लासेस
- पेड़ लगाना और पर्यावरण देखरेख
- स्वास्थ्य शिविर, रक्तदान शिविर
- वंचित बच्चों को पुस्तक/स्टेशनरी वितरण
मोदी जी ने यह अनुरोध किया है कि यह सेवा काम सिर्फ एक दिन का न हो, बल्कि निरंतर किया जाए — यानी कि भाईया दूज तोहफा एक “स्थायी परिवर्तन” का प्रतीक हो।
पृष्ठभूमि और उद्देश्य
- मोदी जी ने हमेशा “लोक सेवा, जन-उपकार, राष्ट्रवृद्धि” की बात की है।
- यह तोहफा उनके उस प्रवृत्ति का उत्सर्जन है कि धर्म, त्योहार और समाज सेवा को जोड़कर एक सकारात्मक सामूहिक चेतना जगाई जाए।
- उन्होंने कहा है कि यह उपहार “उपहार से बढ़कर, परिवर्तन की शुरुआत” हो सकता है।
लोगों की प्रतिक्रिया
सकारात्मक स्वर
- बहनें प्रेरित: कई बहनें सोशल मीडिया पर कह रही हैं कि वे इस सेवा परियोजना को अपनाएँगी और भाई को सक्रिय भागीदार बनायेंगी।
- समाज के हिस्से: स्कूल, कॉलेज, NGO और सामुदायिक केंद्र इस पहल को सराह रहे हैं और अपने स्तर पर कार्यक्रम बना रहे हैं।
- राजनीतिक और मीडिया समर्थन: विपक्षी नेताओं ने इस तोहफे को सकारात्मक कदम माना है — त्योहार को सामाजिक चेतना से जोड़ना हितकारी माना गया।
प्रश्न और चुनौतियाँ
- कुछ लोगों ने यह सवाल उठाया कि क्या यह सिर्फ प्रचार का हिस्सा तो नहीं?
- यह सुनिश्चित करना कि यह “एक दिन की सेवा” न रह जाए, बल्कि नियमित हो — यह बड़ी चुनौती हो सकती है।
- सामाजिक भेदभाव और संसाधन असमानता के बीच समान रूप से इस अभियान को फैलाना आसान नहीं होगा।
कैसे करें इस तोहफे को वास्तविक?
यदि आप इस तोहफे को वास्तविक बनाना चाहते हैं — न कि सिर्फ शब्दों में — तो निम्न कदम उपयोगी होंगे:
- सेवा कार्यक्रम चुनें: अपनी रुचि और संसाधन अनुसार (स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि)।
- भाई-बहन मिलकर योजना बनाएँ: एक छोटी टीम बनाएं, जिम्मेदारियाँ बाँटें।
- स्थानीय समुदाय को जोड़ें: स्कूल, मोहल्ला, पंचायत, NGO आदि के साथ।
- निरंतर बनायें: इसे सिर्फ भाईया दूज तक सीमित न रखें — महीने में एक दिन, या एक फंड बनाएँ।
- दस्तावेजीकरण करें: फोटो, वीडियो, पोस्टर आदि करके काम को प्रदर्शित करें।
- प्रेरणादायक शेयर करें: सोशल मीडिया, ब्लॉग आदि पर अपनी सेवा कहानी साझा करें — ताकि अन्य लोग भी प्रेरित हों।
सामाजिक और राजनयिक संदर्भ
- त्योहारों के अवसर पर इस तरह की पहल राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाती है।
- यह कदम दिखाता है कि राजनीति और संस्कृति को जोड़ने की क्षमता है — त्योहार सिर्फ खुशियाँ बाँटने का दिन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना जगाने का समय भी हो सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से, यह दिखाता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता और सामाजिक सेवा को जोड़कर वैश्विक नेतृत्व की छवि पेश करना चाहता है।

निष्कर्ष
भैया दूज पर मोदी जी का “तोहफा” भौतिक उपहार नहीं — बल्कि सेवा की प्रेरणा है।
यह उपहार हमें याद दिलाता है कि सबसे बड़ी खुशी दूसरों की भलाई में योगदान करने में है।
यदि यह पहल सिर्फ आज के दिन तक सीमित न रहे, बल्कि भाई-बहन, परिवार, समुदाय और राष्ट्र स्तर पर स्थायित्व पाए — तो यह सचमुच एक अद्भुत तोहफा होगा।